Wednesday, October 21, 2009

बस रहो तुम सदा मुस्कुराते हुए



"बस रहो तुम सदा मुस्कुराते हुए "


 रहो तुम सदा मुस्कुराते हुए 
यही एक तमन्ना, यही आरजू 
कुछ कहूँ मैं तुम्हें तो सच मान लो ,
करो विश्वास हर मोड़ पर ।


मुझे अपने से ज्यादा भरोसा अगर ,
तुम पर ही है, यह मान लो 
तुम जो भी कहो सिरोधार्य है,
कुछ प्रमाणित करो न यही मैं कहूँ



तुम कहते सदा मैं खुली हुई किताब ,
 देर किस बात की, पढ़ लो मुझे 
तुम चाहो अगर, पूछ सकते मुझे ,
मैं व्याख्या करूँ ,हर एक प्रश्न का ।

- कुसुम ठाकुर -

11 comments:

  1. तुम कहते सदा, मैं खुली हुई किताब ,

    फिर देर किस बात की, पढ़ लो मुझे ।
    bahut khoob

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  2. सुंदर और स्‍पष्‍ट अभिव्‍यक्ति .. आपकी रचना अच्‍छी लगी !!

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  3. बहुत ही खूब...!हम किसी के बारे में इतना अच्छा सोचते है.शायद यही प्यार है..

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  4. सुंदर कविता।
    हमारी भी यही कामना है।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  5. ek sundar rachana .......dil ke har ek kone jhankrit kar gayi

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  6. तुम कहते सदा, मैं खुली हुई किताब ,
    फिर देर किस बात की, पढ़ लो मुझे ।
    बेहतरीन भावो का एहसास और सुन्दर कविता

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  7. बहुत उम्दा भाव!!

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  8. बहुत खूब!
    घुघूती बासूती

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  9. प्रतिक्रिया के लिए आप सभी का आभार .

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  10. " bahut hi badhiya rachana "

    ---- eksacchai { AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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  11. तुम कहते सदा मैं, खुली हुई किताब ,
    फिर देर किस बात की, पढ़ लो मुझे ।
    तुम चाहो अगर, पूछ सकते मुझे ,
    मैं व्याख्या करूँ ,हर एक प्रश्न का ।
    bahut sundar...

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