Sunday, August 9, 2009

गुम सुम सी बैठी रहती हूँ

"गुम सुम सी बैठी रहती हूँ " 
 
गुम सुम सी बैठी रहती हूँ। 
ख़्वाबों को ख्यालों को , 
नयनों मे बसाती रहती हूँ । 
थक जाते हैं मेरे ये नयन , 
पर मैं तो कभी नहीं थकती । 
गुम सुम ........................ । 
कानों को कभी लगे आहट , 
आते हैं होठों पर ये हँसी । 
पल भर की ये उम्मीदें थीं , 
दूसरे क्षण ही विलीन हुए । 
गुम सुम सी ................... । 
फिर आया एक झोंका ऐसा , 
सब लेकर दूर चला गया । 
अब बैठी हूँ चुप चाप मगर , 
न ख्वाब है, न ख़्याल ही है।
-कुसुम ठाकुर -

8 comments:

  1. फिर आया एक झोंका ऐसा ,
    ====
    न ख्वाब है, न ख़्याल ही है।
    बहुत खूब
    अच्छी रचना

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  2. gehre hav liye nazuk si kavita,badhai.

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  3. बढ़िया अभिव्यक्ति अच्छी रचना.

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  4. बेहतरीन. रचना बधाई।

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  5. बेहतरीन रचना... बधाई...

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  6. chahakti hui kavita
    mahakti hui kavita
    ________pyaari kavita !

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  7. कुसुम जी,

    ख्वाबों को और ख्यालों को आ~म्खों में बसाये रखने की कोशिश सतत जीवन में आशाओं का संचार करती हैं।

    ऐसे झोंके जिनसे ख्वाब टूट जायें कोई बात नही ख्याल नही टूटना चाहिये।

    अच्छी रचना।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  8. प्रतिक्रया के लिए सभी साथी का आभार.

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