Thursday, July 9, 2009

कवि कोकिल विद्यापति


कवि कोकिल विद्यापति

"कवि कोकिल विद्यापति" का पूरा नाम "विद्यापति ठाकुर था। धन्य है उनकी माता "हाँसिनी देवी"जिन्होंने ऐसे पुत्र रत्न को जन्म दिया, धन्य है विसपी गाँव जहाँ कवि कोकिल ने जन्म लिया।"श्री गणपति ठाकुर" ने कपिलेश्वर महादेव की अराधना कर ऐसे पुत्र रत्न को प्राप्त किया था। कहा जाता है कि स्वयं भोले नाथ ने कवि विद्यापति के यहाँ उगना(नौकर का नाम ) बनकर चाकरी की थी। ऐसा अनुमान है कि "कवि कोकिल विद्यापति" का जन्म विसपी गाँव में सन १३५० . में हुआअंत निकट देख वे गंगा लाभ को चले गए और बनारस में उनका देहावसान कार्तिक धवल त्रयोदसी को सन १४४० . में हुआ

यह उन्हीं की इन पंक्तियों से पता चलता है। :

विद्यापतिक आयु अवसान।
कार्तिक धवल त्रयोदसी जान।।

यों तो कवि विद्यापति मथिली के कवि हैं परन्तु उनकी आरंभिक कुछ रचनाएँ अवहटट्ठ(भाषा) में पायी गयी हैं। अवहटट्ठ संस्कृत प्राकृत मिश्रित मैथिली है। कीर्तिलता इनकी पहली रचना राजा कीर्ति सिंह के नाम पर है जो अवहटट्ठ (भाषा) में ही है। कीर्तिलता के प्रथम पल्लव में कवि ने स्वयं लिखा है। :

देसिल बयना सब जन मिट्ठा।
ते तैसन जम्पओ अवहटट्ठा । ।

अर्थात : "अपने देश या अपनी भाषा सबको मीठी लगती है। ,यही जानकर मैंने इसकी रचना की है"।

मिथिला में इनके लिखे पदों को घर घर में हर मौके पर, हर शुभ कार्यों में गाई जाती है, चाहे उपनयन संस्कार हों या विवाह। शिव स्तुति और भगवती स्तुति तो मिथिला के हर घर में बड़े ही भाव भक्ति से गायी जाती है। :

जय जय भैरवी असुर-भयाउनी
पशुपति- भामिनी माया
सहज सुमति बर दिय हे गोसाउनी
अनुगति गति तुअ पाया। ।
बासर रैन सबासन सोभित
चरन चंद्रमनि चूडा।
कतओक दैत्य मारि मुँह मेलल,
कतौउ उगलि केलि कूडा । ।
सामर बरन, नयन अनुरंजित,
जलद जोग फुल कोका।
कट कट विकट ओठ पुट पाँडरि
लिधुर- फेन उठी फोका। ।
घन घन घनन घुघुरू कत बाजय,
हन हन कर तुअ काता।
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक,
पुत्र बिसरू जुनि माता। ।

इन पंक्तियों में कवि कोकिल विद्यापति ने ने माँ के भैरवी रूप का वर्णन किया है। कवि  कहते हैं कि असुरों को भय प्रदान करने वाली हे शिवानी ! आपकी जय हो ! हे देवी ! हमें सहज सुबुद्धि दें, वरदान दें। हे देवी आपके चरणों का अनुगत हो चलने में ही हमारी सद्गति है।  आपके चरण सदा मृतक के आसन पर शोभायमान रहता है , आपके सीमांत चंद्रमणि से अलंकृत हैं। कई दानवों को मारकर अपने मुख में रख लिया, अर्थात उसे विलीन कर दिया, तो कईयों गो उगल दिया, कुल्ला की तरह फेंक दिया। आपका रूप श्यामल और आँखें लाल-लाल। ऐसा प्रतीत होता है मानो आकाश में कमल खिला हो। क्रोध से आपके दांत कट-कट करते हुए, दांत के प्रहार से युगल होठ पांडुर फूल की तरह लाल हो गया है । उसपर विद्यमान रक्त का फेन बुलबुलामय है। आपके चरणों के नुपुर से घन- घन का संगीतमय स्वर निकल रहा है। हाथ में कृपाण हनहना  रहा है ।  आपके चरणों के सेवक कवि विद्यापति कहते हैं कि , हे माता आप अपनी संतान को कभी न भूलें  । 

-कुसुम ठाकुर-

5 comments:

  1. स्‍नातक स्‍तर पर विद्यापति को पढ़ने को मिला है, बहुत ही उम्दा कवि है। बहुत समय पहले अपने ब्‍लाग पर भी कवि विद्यापति पर लेख लिखाथा आप पुन: पढ़कर अच्‍छा लगा।

    ReplyDelete
  2. Kusum ji namaskar..WOMEN ON TOP hindi monthly magzine ap jaise samajsevi ko protsahit karne ka manch de rahi hai..yadi ap women on top me top women ke liye apna profile. photo aur apke samaj karyon ki suchi bheje to behtar hoga..
    dwivedi07@hotmail.com par sampark kar sakti hain
    Manoj Dwivedi
    Sub- Edtitor
    Women On Top
    09899413456

    ReplyDelete
  3. vinamra pranaam
    aisee kavya-vibhooti ko !

    ReplyDelete
  4. पढ्कर अच्छा लगा बहुत बहुत आभार ।

    ReplyDelete
  5. Adikavi Vidyapati ko dekhakar bahut acha laga..

    ReplyDelete