Tuesday, April 7, 2009

आज का अन्तिम पड़ाव


हम हैं राही इस युग के,
चलते हम रहे, मुडते हम रहे।
हर एक कदम के बाद मुड़े,
हर एक कदम के बाद रुके।


हमारा पहला कदम जब उठा ,
यह सोच के कि यह है सही ,
हम पहुँच गए सच्चाई के घर ।
पर वह मुझे नहीं भाया,
और मुड़कर ज्यों पीछे देखा,
दिख गया मुझे आशा की किरण ।
लगा यह मरे लिये ही बना ,
पर यह तो था परोपकार का घर ,
यह क्यों कर मुझे भाये ।
एक बार फिर पीछे जब मुडा,
लगा यही वह, मैं जो चाहूँ ,
यह तो था इन्साफ का घर।
इस घर में बस यात्री भर रहा ,
अन्तिम बार पीछे जब मुडा ,
पहुँच गया जनता के बीच ।


बस यही तो है अपना मुकाम ,
चलते चलते मुझे पड़ाव मिला ,
न मैं मुडू, न ही रुकूं।
बस मैं चलूँ चलता रहूँ ।

-कुसुम ठाकुर-


4 comments:

  1. hi...traced your blog through the jamshedpur link.....u have written some really strong words, liked it much....well i also belong to jamshedpur and u have written about social service.....i liked the idea since i too was associated with ss activities when was in jsr....nice blog

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  2. Thanks Nidhi,
    It was on 5th of February.

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  3. इस सफ़र का हासिल नीला आसमान और चंद गुमशुदा पल हैं जो खोज लिए गए है जुगनुओं की तरह

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  4. बस यही तो है अपना मुकाम ,
    चलते चलते मुझे पड़ाव मिला ,
    न मैं मुडू, न ही रुकूं।
    बस मैं चलूँ चलता रहूँ ।
    while i can run,i'll run,:while i can walk i'll walk
    when i can only crawl,i'll crawl.
    But by the grace of god ,i'll always be moving forward... covett robert
    आपका ब्लॉग देखा ,होली का प्रसंग पसंद आया,खुश रहना और खुशियाँ बाटना.., यही तो ज़िन्दगी है और इसमें ही जीवन का ,जीने का आनंद छुपा है .. .मक्

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