Saturday, December 13, 2008

मेरी पहली कविता

In November 1995 I joined National Association For Blind, Delhi. I use to stay with my sister in New Delhi. My younger son was studying in IIT Delhi at that time. From Delhi I came to Jamshedpur in February 1996, I had not vacated the TISCO flat by that time and had some paper work to be done regarding that. While my stay at Jamshedpur every day people use to come to meet me. I don't remember why, but I decided to stay back at Jamshedpur. Luckily I got a job in a school named Tagore Academy which was new and had some vacancy for teachers. After joining I liked that job.
One day during my off period I just wrote a poem , which is:

"कैसे भूलूं "

तुमको याद करुँ मैं इतना
मैं ख़ुद को ही भूल जाऊँ
मैं तो भूली ही कब तुमको
कहूँ न किया कब याद

इस हृदय की सारी बातें
एक तुम्हीं ने जाना
अब क्या धरा हुआ इस जग में
जो मैं इसकी हो जाऊँ

मेरी सारी खुशियाँ तुम थे
इस जग ने न जाना
रोम- रोम में तुम हो, तुम हो
मैं क्यों कर भूल पाऊं

तुम तो सदा कहा करते थे
तुम तो बस मेरी हो
पर तुम कभी न यह सोचे कि
तुम भी तो मेरे हो

बिना तुम्हारे इस दुनिया में
मैं कैसे रह पाऊं
इतना तो बस सोचे होते
मैं फिर धन्य हो जाती

कुसुम ठाकुर
टैगोर एकाडमी
१८/११/९७
समय -१२:४०




9 comments:

  1. अच्छी कविता है। हिन्दी में और भी लिखिये।

    कृपा कर वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें। मेरी उम्र के लोगों को यह तंग करता है।

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  2. Didi ,

    It is so Coool , you made me cry !!!

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  3. तुम तो सदा कहा करते थे,
    तुम तो बस मेरी हो।
    पर तुम कभी न यह सोचे कि,
    तुम भी तो बस मेरे हो।
    यह प्रक्रिया ही अन्योन्याश्रयित है. हम जिसके हैं वह हमारा है ही.
    सुन्दर रचना

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  4. धन्य भाग हैं आपके इतनी बेहतर सोच.
    संग समय के दें इसे और नया कुछ लोच..
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  5. बहुत सुन्दर रचना।
    आपकी पुरानी नयी यादें यहाँ भी हैं .......कल ज़रा गौर फरमाइए
    नयी-पुरानी हलचल
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/

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  6. मन की भावनाओं का कैनवास है यह रचना ...

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  7. bahut achchha likha hai aapne

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