Monday, September 7, 2020

कैसे बीते दिन



कैसे बीते दिन कैसी है रातें 
हम किस तरह से कहे मन की बातें 
कैसे  बीते दिन...................
कहे उनसे कोई है लंबी ये रातें 
करवटें बदल रही है थकती निगाहें 
कैसे बीते दिन....................
वो जन्मों की कसमे यादों में आये
रही मन में कसकें न वादे निभाए 
कैसे बीते दिन ...................
ढूंढें निगाहें अब भी वो चाहे
वो नज़रों का मिलना कैसे भुलाएं 
कैसे बीते दिन .....................
अंजुम निहारें है कोई क्या उनसा
मगर मिल न पाए जो उनसे हो मिलता 
कैसे बीते दिन ..........................

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 08 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आदरणीया कुसुम ठाकुर जी, नमस्ते! बहुत सुंदर रचना है। खासकर ये पंक्तियाँ:
    ढूंढें निगाहें अब भी वो चाहे
    वो नज़रों का मिलना कैसे भुलाएं। साधुवाद!
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    सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ

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  3. विरह के दिन मुश्किल ही बीतते हैं ...
    भावपूर्ण रचना ...

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  4. आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद

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