"चलने का बहाना ढूँढ लिया"
चलने की हो ख्वाहिश साथ अगर
चलने का बहाना ढूंढ लिया
यूं रहते थे दिल के पास मगर
तसरीह का बहाना ढूंढ लिया
मुड़कर भी जो देखूं मुमकिन नहीं
आरज़ू थी जो मुद्दत से ढूंढ लिया
तसव्वुर में बैठे थे शिद्दत सही
खलिश को छुपाना ढूंढ लिया
कहने को मुझे हर ख़ुशी है मिली
हँसने का बहाना ढूंढ लिया
- कुसुम ठाकुर -
उम्दा ग़ज़ल।
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