Tuesday, July 23, 2013

रजत जयंती स्वर्ण बनाओ




( यह कविता मैं ने अपनी छोटी बहन के २५ वीं शादी की सालगिरह पर लिखी है.)

"रजत जयंती स्वर्ण बनाओ"

एक दूजे से प्यार बहुत
दुनिया में दीवार बहुत 

किसने किसको दी तरजीह
वैसे तो अधिकार बहुत 

लगता कम खुशियों के पल हैं 
पर उसमे श्रृंगार बहुत 

देखोगे नीचे संग में तो 
जीने का आधार बहुत 

एक दूजे के रंग में रंगकर 
खुशियों का संसार बहुत 

कुसुम कामना अनुपम जोडी 
सदियों तक हों प्यार बहुत 

रजत जयंती स्वर्ण बनाओ 
जीवन की रफ़्तार बहुत 

-कुसुम ठाकुर-

Saturday, July 13, 2013

चाहत तुम्हारी फिर से


(कुछ दिन कुछ पल ऐसे होते हैं जो चाहकर भी भूला नहीं जा सकता, उसी दिन की याद में मेरी यह रचना जिसे लोगों ने भुला दिया।)

"चाहत तुम्हारी फिर से"

चाहत तुम्हारी फिर से मुझको सजा दिया  
सोई हुई थी आशा उसको जगा दिया

कहने को जब नहीं थे, सोहबत नसीब थी 
खोजा जहाँ मैं दिल से, चेहरा दिखा दिया 

ढूँढ़े जिसे निगाहें उजडा वही चमन था 
देखा गुलाब सूखा लगता चिढ़ा दिया 

चाहत किसे कहेंगे, तबतक समझ नही थी 
जब चाहने लगे तो उसने रुला दिया 

नव कोपलों के संग में कलियाँ खिले कुसुम की
खुशबू, पराग सब कुछ तुम पर लुटा दिया 

-कुसुम ठाकुर-