Wednesday, March 27, 2013

मन का भेद पपीहा खोले


"मन का भेद पपीहा खोले"

जिस माली ने सींचा अबतक सुबक सुबक वह रोता है
पाल पोसकर बड़ा किया हो उसको एक दिन खोता है  

धूप हवा का जो ख़याल रख पंखुड़ियाँ है नित गिनता
उस उपवन में चाहत से क्या पतझड़ में कुछ होता है  

नेमत उसकी है प्रकृति फिर छेड़ छाड़ क्यों है करता
फूल खिले काँटों में रहकर फिर कांटे तू क्यों बोता है  

शुष्क टहनियों पर नव पल्लव, कलियाँ भी हैं मुस्काती
मधुमास के आते ही मधुप फूलों से अमृत ढ़ोता है  

कुहू कुहू कोयल जब बोले मन का भेद पपीहा खोले
हर्षित कुसुम भंवरों का गुन गुन भी सुहावना होता है  

-कुसुम ठाकुर-


3 comments:

  1. होली की महिमा न्यारी
    सब पर की है रंगदारी
    खट्टे मीठे रिश्तों में
    मारी रंग भरी पिचकारी
    होली की शुभकामनायें

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  2. बहुत सुन्दर भावनात्मक रचना. आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  3. सुन्दर रचना

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