Saturday, July 28, 2012

कहती है नैना हसूँ अब मैं कैसे.


"कहती है नैना, हसूँ अब मैं कैसे"

बयाँ हाले दिल का करूँ अब मैं कैसे
खलिश को छुपाकर रहूँ अब मैं कैसे 

बुझी कब ख्वाहिश नहीं इल्म मुझको
है तन्हाइयाँ भी सहूँ अब मैं कैसे 

चिलमन से देखी बहारों को जाते
हिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे 

हो उल्फत की चाहत ये मुमकिन नहीं
जो दूर चेहरा पढूँ अब मैं कैसे 

 शोखी कुसुम की है पहले से कम क्यूँ 
  कहती है नैना, हसूँ अब मैं कैसे 

-कुसुम ठाकुर-

10 comments:

  1. बहुत ही सुंदर समीक्षा ...
    हार्दिक बधाई !!

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  2. हो उल्फत की चाहत ये मुमकिन नहीं
    जो दूर चेहरा पढूँ अब मैं कैसे

    बहुत सुन्दर ..

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  3. खुबसूरत गजल...
    सादर.

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  4. बहुत ही खुबसूरत गजल..
    बेहतरीन:-)

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  5. चिलमन से देखी बहारों को जाते
    हिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे

    क्या खूब लिखा है आपने
    बहुत खूब !

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  6. सुन्दर....
    बहुत सुन्दर रचना...

    अनु

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  7. आज 30/07/2012 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

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  8. वाह...बहुत ही सुन्दर....

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  9. बहुत सुन्दर भाव लिए रचना

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