Wednesday, November 23, 2011

तेरा दिया ही लाई हूँ

 

"तेरा दिया ही लाई हूँ"

 हूँ तो माँ इक तुच्छ उपासक,द्वार पे तेरे आई हूँ। 
कैसे कहूँ लोभ नहीं है,सब तेरा दिया ही लाई हूँ। । 

न मैं जानूँ आरती वंदन,स्वर में भी कम्पन मेरे। 
 दर्शन की प्यासी हूँ मैया,इसी उद्देश्य वश आई हूँ। 

बीच भंवर में नाव है मेरी,खेवनहार तुम्ही हो कहूं।  
शरणागत की रक्षा करती,माँ यही गुहार लगाई हूँ।  

मन में मेरे पाप का डेरा,सेवा में अर्पण क्या करूँ।   
तू माता लेती सुधि सबकी,बस यही राग मैं गाई हूँ।   

है मेरा मन चंचल मैया,मन के भाव कहूँ कैसे 
तुमको कहते अन्तर्यामी,इस द्वार पे साहस पाई हूँ।   

-कुसुम ठाकुर-  

Saturday, November 5, 2011

मैं न उसमे बही सही


"मैं  उसमे बही सही"

मैंने मन की कही सही 
जो सोचा वह सही-सही 

भूली बिसरी यादें फिर भी 
आज कहूँ न रही सही 

 कितना भी दिल को समझाऊँ  
आँख हुआ नम यही सही 

वह रूठा न जाने कब से 
प्यार अलग सा वही सही 

रंग अजब दुनिया की देखी 
मैं न उसमे बही सही 

- कुसुम ठाकुर-