" बयाँ हाले दिल का करूँ अब मैं कैसे"
बयाँ हाले दिल का करूँ अब मैं कैसे
खलिश को छुपाकर रहूँ अब मैं कैसे
बुझी कब ख्वाहिश नहीं इल्म मुझको
तन्हाइयाँ भी सहूँ अब मैं कैसे
चिलमन से देखी बहारों को जाते
हिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे
हो उल्फत की चाहत ये मुमकिन नहीं
रहे दूर चेहरा पढूं अब मैं कैसे
- कुसुम ठाकुर -
शब्दार्थ :
खलिश - कसक, चिंता, आशंका,पीड़ा,
इल्म - ज्ञान, जानकारी
चिलमन - चिक, बांस के फट्टियों का पर्दा
चिलमन से देखी बहारों को जाते
ReplyDeleteहिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे
यही तो कश्मकश है जो हमें जिन्दगी से रूबरू करवाती है
बहुत सुन्दर रचना .......
ReplyDeleteचिलमन से देखी बहारों को जाते हिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे
ReplyDeleteहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
मन की भावनाओं को अभिव्यक्त करती बेहतरीन ग़ज़ल।
ReplyDeleteचिलमन से देखी बहारों को जाते
ReplyDeleteहिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे
हो उल्फत की चाहत ये मुमकिन नहीं
रहे दूर चेहरा पढूं अब मैं कैसे
बहुत खूबसूरती से एहसासों को पिरोया है ..
चिलमन से देखा सही कर लें ।
ReplyDeleteबुझी कब ख्वाहिश नहीं इल्म मुझको
ReplyDeleteतन्हाइयाँ भी सहूँ अब मैं कैसे
हर पंक्ति मन को छूने वाली ....भावपूर्ण है..... बहुत सुन्दर रचना .......
बयाँ हाले दिल का करूँ अब मैं कैसे
ReplyDeleteखलिश को छुपाकर रहूँ अब मैं कैसे
मत्ला बहुत अच्छा है
दिल की बेबसी को बयां करती खूबसूरत ग़ज़ल .
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteचिलमन से देखी बहारों को जाते
ReplyDeleteहिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे
बहुत सुन्दर!
यह काव्य यात्रा बढियां है ,शुभकामनाएं !
ReplyDeleteगहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
bhavon ko apne bheetar sanjoye umda rachna !badhai swikaar kare .kabhi mere blog par bhi aaye .
ReplyDeleteचिलमन से देखी बहारों को जाते
ReplyDeleteहिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे
सुन्दर अभिव्यक्ति !
प्रशंसनीय ।
ReplyDeleteआप सभी का आभार !
ReplyDeleteहो उल्फत की चाहत ये मुमकिन नहीं
ReplyDeleteरहे दूर चेहरा पढूं अब मैं कैसे
vaise to sabhi sher badhiya hai... apani bhavanao ko urdu shabdo ke sath pesh kiya - arth diye.. kabil-e-tarif...
हो उल्फत की चाहत ये मुमकिन नहीं
ReplyDeleteरहे दूर चेहरा पढूं अब मैं कैसे
vaise to sabhi sher badhiya hai... apani bhavanao ko urdu shabdo ke sath pesh kiya - arth diye.. kabil-e-tarif...
हो उल्फत की चाहत ये मुमकिन नहीं
ReplyDeleteरहे दूर चेहरा पढूं अब मैं कैसे
बहुत खूब। दिल की कशमकश और खुद से संवाद। सुन्दर। बधाई।
bahut achha likha hai
ReplyDelete