Saturday, November 27, 2010

हाले दिल बयां करूँ अब मैं कैसे

" बयाँ हाले दिल का करूँ अब मैं कैसे"

बयाँ हाले दिल का करूँ अब मैं कैसे 
खलिश को छुपाकर रहूँ अब मैं कैसे 

बुझी कब ख्वाहिश नहीं इल्म मुझको 
तन्हाइयाँ भी सहूँ अब मैं कैसे 

चिलमन से देखी बहारों को जाते 
हिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे 

हो उल्फत की चाहत ये मुमकिन नहीं   
रहे दूर चेहरा पढूं अब मैं कैसे 

- कुसुम ठाकुर -

शब्दार्थ :
खलिश - कसक, चिंता, आशंका,पीड़ा, 
इल्म - ज्ञान, जानकारी 
चिलमन - चिक, बांस के फट्टियों का पर्दा 

Thursday, November 4, 2010

गिले शिकवे सपनों में आके रुला दे


"गिले शिकवे सपनों में आके रुला दे "

सफ़र खूबसूरत जो वादे भुला दे ,
गिले शिकवे सपनों में आके रुला दे .

चमन भी है सूना है घर मेरा सूना ,
ख़ुशी की वो घड़ियाँ जो गम को भुला दे . 

कटे भी न कटती हैं ये लम्बी सी रातें ,
यादों के मंज़र में मुझको झुला दे .

मिला मुझको वो जिसकी चाहत कभी थी,
परछाइयाँ जिसकी खुशियाँ दिला दे .

सफ़र यूँ तो कट जाए बाकी बचा जो,
दो शक्ति मुझे जो मन को भुला दे . 

- कुसुम ठाकुर -