The Caption On The Wall
Wednesday, October 27, 2010
Thursday, October 7, 2010
आराधना
"आराधना"
माँ कैसे करूँ आराधना ,
कैसे मैं ध्यान लगाऊँ ।
द्वार तिहारे आकर मैया ,
कैसे मैं शीश झुकाऊँ ।
मन में मेरे पाप का डेरा ,
माँ कैसे उसे निकालूं ।
न मैं जानूं आरती बंधन ,
माँ कैसे तुम्हें सुनाऊँ ।
बीता जीवन अंहकार में ,
याद न आयी तुम माँ ।
अब तो डूब रही पतवार ,
माँ कैसे पार उतारूँ ।
कर्म ही पूजा रटते रटते ,
माँ बीता जीवन सारा ।
पर तन भी अब साथ न देवे ,
माँ, अर्चना करूँ मैं कैसे ।
मैं तो बस इतना ही जानूँ ,
माँ, तू सब की सुधि लेती ।
एक बार ध्यान जो धर ले ,
माँ दौड़ी उस तक आती ।
- कुसुम ठाकुर -