Thursday, May 6, 2010

अबला

इस बीच अस्वस्थता काम की व्यस्तता और मानसिक तनाव की वजह से काफी कम लिख  पाई हूँ  हाँ, समाचार से दूरी नहीं बना पाई। अपने स्वभाव वश मैं छोटी सी छोटी बातों को गहराई से सोचती हूँ और कई बार ऐसा होता है कि मैं उसमे उलझकर रह जाती हूँ  क्यों कि बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जिसमे सब की राय मुझसे बिल्कुल ही अलग होता है। मैं तर्क ज्यादा नहीं कर सकती इसलिए चुप रहकर मूक दर्शक बन जाती हूँ, परन्तु मेरा मन बिचलित रहता है हाँ अनुशासन हीनता और अन्याय मैं कदापि बर्दाश्त नहीं कर सकती उस समय मैं बिल्कुल चुप नहीं रहती, चाहे वह कोई हो और किसी के साथ हो रहा हो।   


बचपन में समानार्थक शब्द जब भी पढ़ती थी बस "नारी" पर आकर अटक जाती थी। मेरे मन में एक प्रश्न बराबर उठता -"इतने शब्द हैं नारी के फिर अबला क्यों कहते हैं"? अबला से मुझे निरीह प्राणी का एहसास होता। सोचती, जो त्याग और ममता की प्रतिमूर्ति मानी जाती है वह अबला कैसे हो सकती ? एक तरफ हमारे पुरानों में नारी शक्ति का जिक्र है दूसरी तरफ हमारे व्याकरण में उसी नारी के लिए अबला शब्द का प्रयोग क्यों ? पर मुझे उत्तर मिल नहीं मिल पाता । मैं अबला शब्द का प्रयोग कभी नहीं करती बल्कि अपनी सहपाठियों को भी उसके बदले कोई और शब्द लिखने का सुझाव देती ।


जब बच्चों को पढ़ाने लगी उस समय भी बच्चों को नारी के समानार्थक  शब्द में "अबला" शब्द लिखने पढ़ने नहीं देती और बड़े ही प्यार और चालाकी से नारी के दूसरे दूसरे शब्द लिखवा देती । मालूम नहीं क्यों अबला शब्द मुझे गाली सा लगता था और अब भी लगता है।  


आज नारी की परिस्थिति पहले से काफी बदल चुकी है यह सत्य है। आज किसी भी क्षेत्र में नारी पुरुषों से पीछे नहीं हैं । बल्कि पुरुषों से आगे हैं यह कह सकती हूँ । इन सबके बावजूद उसके स्वाभाविक रूप में कोई बदलाव नहीं आया है । पर आज की नारी कुंठा ग्रसित हैं, जो उन्हें ऊपर उठाने में बाधक हो सकता है । हमारे साथ कल क्या हुआ उस विषय में सोचने के बदले यदि हम अपने आज के बारे में सोचें तो हमारा आत्म विश्वास और अधिक बढेगा । बीता हुआ कल तो हमें कमजोर बनाता है , हमारे मन में आक्रोश ,कुंठा , बदले की भावना को जन्म देता है । फिर क्यों हम अपने अच्छे बुरे की तुलना कल से करें और बात बात में नीचा दिखाने की कोशिश करें। जरूरी नहीं कि उंगली उठाने से ही गल्ती का एहसास हो । हमरा ह्रदय हमारे हर अच्छे बुरे की गवाही देता है , धैर्य भी नारी का एक रूप है। 


आज एक ओर तो हम बराबरी की बातें करते हैं दूसरी तरफ आरक्षण की भी माँग करते हैं , यह मेरी समझ में बिल्कुल नहीं आता है । यहाँ भी अबला का एहसास होता है । क्या हम आरक्षण के बल पर सही मायने में आत्म निर्भर हो पाएंगे? 

नारी ममता त्याग की देवी मानी जाती है और है भी  यह नारी के स्वभाव में निहित है , यह कोई समयानुसार बदला हो ऐसा नहीं है। ईश्वर ने नारी की संरचना इस स्वभाव के साथ ही की है। हाँ अपवाद तो होता ही है। आज जब नारी पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर चल रही है तब भी अबला शब्द व्याकरण से नहीं निकल पाया है और तब तक नहीं निकल पायेगा जबतक हम नीचा दिखाने की कोशिश करते रहेंगे ,आरक्षण की मांग करते रहेंगे । हमें जरूरत है अपने आप को सक्षम बनाने की, आत्मनिर्भर बनने की, आत्मविश्वास बढ़ाने की और तब "नारी" शब्द का पर्यायवाची "अबला" हमारे व्याकरण से निकल पायेगा । 



21 comments:

  1. आपसे सहमत हूँ

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  2. बढ़िया और सकारात्मक भावों के साथ सुन्दर लेखनी,
    नारी ना कभी अबला थी ना है और ना रहेगी,
    ये तो बस पुरुषवादी मानसिकता से उपजा एक नि:संदेह गाली ही है

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  3. कुछ एक सुशिक्षित एवं सजग महिलाओं को छोड़ दें तो स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन आया नहीं लगता . नारी को अबला से सबला बनने के लिए अभी काफी दूरी तय करनी है . इस दिशा में सभी का सहयोग वांछित है.

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  4. कुछ एक सुशिक्षित एवं सजग महिलाओं को छोड़ दें तो स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन आया नहीं लगता . नारी को अबला से सबला बनने के लिए अभी काफी दूरी तय करनी है . इस दिशा में सभी का सहयोग वांछित है.

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  5. "हमें जरूरत है अपने आप को सक्षम बनाने की, आत्मनिर्भर बनने की, आत्मविश्वास बढ़ाने की और तब "नारी" शब्द का पर्यायवाची "अबला" हमारे व्याकरण से निकल पायेगा।" - जी बिलकुल सही

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  6. बिल्कुल सही कहा आपने………………………जब अबला वाले संस्कार हमारे या पुरानी पीढियों मे डाले गये तो आज सबला वाले संस्कार भी तो हमें ही डालने हैं..........और इस मे भी समाज से कोई उम्मीद नही कर सकते मगर हम नारियों को ही ये बीज रोपित करना होगा ताकि आगे आने वाली पीढियाँ तो कम से कम इस दंश को ना झेलें।

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  7. बढ़िया और सकारात्मक भावों के साथ सुन्दर लेखनी,

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  8. बीता हुआ कल तो हमें कमजोर बनाता है , हमारे मन में आक्रोश ,कुंठा , बदले की भावना को जन्म देता है । फिर क्यों हम अपने अच्छे बुरे की तुलना कल से करें और बात बात में नीचा दिखाने की कोशिश करें। जरूरी नहीं कि उंगली उठाने से ही गल्ती का एहसास हो ।
    ....सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार ..

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  9. nari ab 'abalaa' nahi, 'sabalaa' hai aur har jagah vah safalataa ka 'tabala'' bazaa rahi hai. shareerik drishti se vah kamjor ho sakatee hai, lekin manasik drishti se vah paurushon par bharee hrahati hai. vaise to ab ''wwf'' me mahilayen bhi zordaar ghoonsen chalaatee hai. ab shareerik kamzori bhi nahi hai. kulmilaakar ''abala'' bahut pahale se hi ''sabalaa'' ho chuki hai. aapke mudde vicharneey hai.

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  10. सार्थक आलेख...नारी को खुद ही अपनी खुशियाँ ढूंढनी हैं.आत्मनिर्भर होकर खुद ही अपने फैसले लेने हैं

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  11. सोलह आने सही ..बात है आपकी .....परन्तु मैं अब भी परेशान हूँ ,,,नारी को क्या समझू ....शक्तिशाली या अबला .........जो औरतें कल अपने आप को शक्तिशाली होने का ढोल बजा रही थी है ..अगले ही दिन खुद के कमजोर ...होने की दुहाई देती नज़र आती है ....और उस से अगले दिन फिर शक्तिशाली हो जाती है ....कुछ समझ में नहीं आती ये दोहरी प्रवृति ...जहा खुद को हिम्मतवाली कहकर वाहवाही ...बटोरती है ..वही अबला बनकर सहानभूति से जेंबे भारती है ..हमारा भेजा ही काम नहीं करता इस मामले में ......क्या करे आप ही बताएं औरत को क्या समझे ........अबला ....या ताक़तबर

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  12. राजेंद्र जी ,
    वैसे तो आप बहुत होशियार लगते हैं ........पर भूल कर भी औरत को अबला न समझें

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  13. औरत को कभी कमजोर नहीं समझिएगा और कम से कम आज की औरत को तो बिलकुल नहीं. कल तक उसे ममता,त्याग की दुहाई देकर फुसलाया जा सकता था मगर अब नहीं ..................क्या बात है आज हर कोई ये ही क्यूँ चाहता है कि औरत आज भी वैसे ही पुरुष के पाँव की जूती बनी रहे बेशक घर में पैसा कमा कर ले आये मगर उसे उसके हक ना दिए जायें .............कोई ना दे मगर अब औरत को अपने हक लेने आ गए हैं .और आज की औरत एक नए और स्वस्थ समाज की नींव रखने के काबिल हो गयीं है जैसा कि कुसुम जी ने कहा है ...............अब तो औरतों को ही आगे आना होगा क्यूंकि इस समाज से कोई उम्मीद नहींकी जा सकती क्यूंकि यहाँ के पुरुष या समाज ये चाहता ही नहीं कि एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो और वो तभी संभव है जब नारी आगे आये और अच्छे संस्कार आने वाली पीढ़ी में रोपित करे.

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  14. सवाल अबला या सबला का नहीं - सवाल है कि वर्तमान हालात में नारी की स्थिति में कैसे सकारात्मक सुधार लाया जाय। उस दृष्टिकोण से आपका यह आलेख सार्थक है कुसुम जी।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  15. कुसुम जी की इस बात से सहमत हूं कि नारी को अब अबला नहीं कहा जाना चाहिए...नारी सबला है।

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  16. कुसुम जी की इस बात से सहमत हूं कि नारी को अब अबला नहीं कहा जाना चाहिए...नारी सबला है।

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  17. आपसे सहमत,
    नारी कभी अबला न थी और ना रहेगी।
    सबका दृष्टिकोण अलग-अलग होता है।

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  18. Yes, I agree with you. Women are not helpless(abla). Actually women had a great quality of forgiveness which is named as helplessness (abla) by some so called genious people.

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  19. excellent thoughts...put together in words... ur articles reveal d true person in u... a sensible & intelligent being... thanks 4 giving me an opportunity 2 read dem...

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  20. बहुत सुब्दर लेख
    नारी नहीं भारी
    सर उसके घर परिवार जुम्मेदारी

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