झलक दिखाने आ जाओ

'झलक दिखाने आ जाओ'

पलभर को कहीं गफलत ही सही, चेहरा तो दिखाने आ जाओ
तुम बुझे हुए नयनों के इन पलकों में समाने आ जाओ

प्रिय रुठे क्यों हो तुम अब तक बोलो कैसी है मजबूरी
ये  बेचैनी मैं कासे कहूँ एहसास जगाने आ जाओ

हो दूर मगर तुम जुदा नहीं आंसूं का साथ हुआ अपना
तन्हाई संग-संग रहती है पल भर को सताने आ जाओ

इस पार हैं हम उस पार हो तुम फिर मिलना कैसे हो संभव
सपनों में यकीं है मुझको तुम इक झलक दिखाने आ जाओ

दिन भर तो प्रतीक्षा कुसुम करे फिर शाम ढले वो मुरझाए
भंवरों की गुंजन यही कहे सपनों को सजाने आ जाओ

-कुसुम ठाकर-

वह रात मुझे डराती है

"वह रात मुझे डराती है "

वह रात मुझे डराती है 
जब याद तुम्हारी आती है 

दुःख की बातें याद नहीं
सुख सोच बहुत तडपाती है

व्याकुल हो जब भी ढूढूँ मैं
लगता मुझे चिढाती है

जीवन हो जीने की कला
यह सोच मुझे भरमाती है

साथी मुझसे छूटा जबसे
सपनो में सहलाती है

-कुसुम ठाकुर-