Wednesday, August 12, 2015

भारत को शिक्षित बनाओ

 
(पोलियो निवारण के बाद रोटरी का अगला कदम है 'साक्षरता मिशन' उसी पर कुछ पंक्तियाँ )
"भारत को शिक्षित बनाओ"

भारत को शिक्षित बनाओ हम सबका यह नारा है
जन-जन तक शिक्षा पहुँचाएं यह कर्तव्य हमारा है 

ठान लिया जब हमने बीड़ा कदम कभी न रुकने देंगे
हर व्यक्ति जब होगा शिक्षित तब स्वतंत्र कहलाएंगे

तीन वर्ष का समय मिला है जाया इसे न करना है
पथ प्रदर्शक साथ हमारे मिला देश हर कोना है

शून्य दिया है देश ने जग को होगा साक्षर हर व्यक्ति
 फिर कलाम की जन्म भूमि के जन-जन  को मिले शक्ति

  शिक्षा तो जन का अधिकार, जागरूक हम बनाएंगे
  पूरा होगा मिशन हमारा, अशिक्षा दूर भगाएंगे
-कुसुम ठाकुर-

Tuesday, February 3, 2015

हार मिली पर हार वही

"हार मिली पर हार वही"

है चाहत  हर बार वही
क्यों रहता ना प्यार वही

आती जाती यादों पर
हो अपना अधिकार वही

प्यार सदा सच  कहता है
हार मिली पर हार वही

प्यार कला है जीने की
तब जगमग संसार वही

समझ कुसुम नैनों की भाषा
प्रेम सहज हर बार वही

-कुसुम ठाकुर-

Monday, February 2, 2015

कन्यादान महादान क्यों ?

 कहते हैं कन्यादान महा दान अर्थात इससे बड़ा दान नहीं होता है. बेटियों को दान में क्यों दिया जाता है यह आजतक मेरी समझ से परे है. दान में तो वस्तु दी जाती है, तो क्या बेटियाँ वस्तु हैं ? कहते हैं जो वस्तु दान में दे दी जाती है  उस पर न कोई अधिकार होता है न ही उसके बारे में सोचना चाहिए. तो क्या बेटियों पर भी यही लागू होता है ? कन्यादान कब कैसे और क्यों हमारे विवाह पद्धति में जुड़ा यह अभी चर्चा का विषय नहीं है पर उसका दुष्परिणाम आज भी हमारे समाज में लड़कियों को भुगतना पड़ रहा है. 

कहते हैं सीता जी की अग्नि परीक्षा, वनवास और लव कुश की कहानी अर्थात उत्तरकाण्ड राम चरित मानस का अंश नहीं है, इसे बाल्मीकि ने नहीं लिखा है, इसे बाद में विद्वानों ने जोड़ा है. हमारे धर्म ग्रंथों पर चर्चा करें तो यह विवाद का विषय हो जाएगा. पर हम उसी ग्रन्थ के आधार पर गर्व से कहते हैं मर्यादा पुरषोत्तम राम ने एक धोबन के कहने पर अपनी सीता जैसी पत्नी तक का त्याग कर दिया. यहाँ भी पुरुष की प्रधानता दर्शाता है. क्या यह पौरुषता का विषय है? एक गर्भवती पत्नी का त्याग करना क्या पौरूषता है ? यहाँ भी सीता को अबला नारी का दर्जा मिला . दिव्य शक्ति प्राप्त सीता अबला नारी बन गई. 

पहले हम कहते थे बेटियाँ घर की शोभा होती हैं, सच उसी घर की शोभा को दान में देकर हम खुश हो जाते है और उम्मीद करते हैं कि हमारे घर की शोभा अपने ससुराल जहां वह दान स्वरुप भेजी जा रही है उस घर की शोभा बनकर तो रहे ही, साथ ही उस घर की जिम्मेदारियों की भी अच्छी तरह पालन करे, उसे कितना भी कष्ट हो दोनों घरों की इज्जत पर आंच न आने दे, लड़कियों और लड़कों के लिए परिभाषा अलग अलग है.

आजकल लडकियां घर की शोभा तो नहीं कहलाती हाँ, लड़के लड़की में क्या फर्क है ? लोग यह जरूर कहते हैं. जब ही यह कहा जाता लड़के लड़की में क्या फर्क है मतलब स्पष्ट है फर्क तो है हम कोशिश कर रहे हैं फर्क कम करने की. आज भी बहुत कम लोग हैं जो शादी के बाद बेटी के बारे में भी उतना ही सोचते हैं जितना बेटे के बारे में सोचते हैं. आज भी बेटी शादी के बाद परायी हो जाती है. हा, सांत्वना और दिखावा के लिए यह जरूर कहते हैं बेटियाँ बेटों से ज्यादा माँ बाप के बारे में सोचती हैं. केवल बेटों के लिए धन उपार्जन और पैतृक संपत्ति का रिवाज अभी भी बरकरार है. 

कन्यादान जैसे महादान को हटा देना चाहिए , तब ही हम कह सकते है लडके लड़कियों में कोई फर्क नहीं, वर्ना सदियों से चली आ रही लडके लड़की में फर्क रहेगा ही. जबतक हम कन्या का दान करते रहेंगे उसके साथ अबला शब्द जोड़ा जाता रहेगा और माता पिता बेटा बेटी में भेद करते रहेगे.