नैनो से बरसात क्यों


(आज की रचना उस प्रिय व्यक्ति के लिए है जिन्होंने मुझे इस काबिल बनाया कि आज मैं अपने भावों को लिख पाऊं)

नैन से बरसात क्यों?
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कह सकूं मैं आज फिर से ना कहूँ वो बात क्यों?
आज फिर छलकीं हैं, खुशियाँ नैन से बरसात क्यों?

बात कर इंसानियत की पहले तू इंसान बन
तुम ख़ुशी गर दे ना पाए बेवजह आघात क्यों?

गीत विस्मृत गुनगुनाऊं, अब भी वह अनुराग है
अपने सुर में गीत वो गाऊँ बदल जज्बात क्यों?

रिश्ते होते जो भी नाजुक बाँध उसको प्यार से
जिन्दगी कितने दिनों की बात से फिर घात क्यों?

सींचता है सोच माली गुल से ही गुलजार हो
जो कुसुम खुशबू लुटाए, तोड़ते बेबात क्यों?

© कुसुम ठाकुर 

10 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

कृतज्ञता प्रकट करते हुए,
बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

Badhiya rachnaa !

नीरज गोस्वामी said...

इंसानियत की बात करते , इंसान तो पहले बनो
यदि ख़ुशी तुम दे न पाओ दे रहे आघात क्यों


BEJOD RACHNA...BADHAI

आर्यावर्त डेस्क said...

भावों की बेहतर प्रस्तुति,
श्रधांजलि.

Mithilesh dubey said...

bahut sundar

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) said...

इंसानियत की बात करते , इंसान तो पहले बनो
यदि ख़ुशी तुम दे न पाओ दे रहे आघात क्यों

बेहतरीन शेर ,
लाजवाब गज़ल !!

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

behtarin ghazal..sadar badhayee aaur amantran ke sath

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

behtarin ghazal..sadar badhayee aaur amantran ke sath

AWAJ Pratibha Chauhan said...

भावना प्रधान रचना है।बेहतर गज़ल लिखी है।

mridula pradhan said...

kya baat hai.....