जो कह न सको तो


"जो कह न सको तो"

 वो भी कैसा प्यार जो कह न सको तो 
दिल में उठे बयार जो कह न सको तो

यूँ दूरियाँ सही पर दिल के करीब है जो 
मिलने का इंतजार जो कह न सको तो 

लम्बे सफर के सँग ही मजबूरियाँ बहुत 
आयेगा क्या करार जो कह न सको तो 

क्या प्यार रह सका है वश में किसी के   
 होते हैं दिल पे वार जो कह न सको तो 

दिल में उसे बसाया जो स्वप्न था कुसुम का 
दीदार में है प्यार जो कह न सको तो 

- कुसुम ठाकुर-

नहीं है प्रेम की सीमा

"नहीं है प्रेम की सीमा"

छवि बसती जो नैनों में उसे झुठलाया नहीं जाता
प्रेम का पाश बंधने पर उसे सुलझाया नहीं जाता

डूब जाए अगर प्रेमी  झील सी गहरी आँखों में
नयन चार जब हो जाए तो शरमाया नहीं जाता

विकलता इंतजारी में धैर्य की क्या बने सीमा
मिलन को प्रेमी जब आतुर उसे तड़पाया नहीं जाता

समर्पण भाव से जब है झिझक फिर छोड़ना लाजिम
ख़ुशी और गम ह्रदय में जब उसे बिसराया नहीं जाता

नहीं है प्रेम की सीमा निहित हो भाव कोमल सा 
कुसुम कोमल उसे काँटों से सहलाया नहीं जाता 

-कुसुम ठाकुर-

था मेरा सचमुच कभी


 "था मेरा सचमुच कभी"

उड़ सकूँ स्वछन्द होकर सोचा नहीं था यह कभी  
मन के तारों से बंधूँ हो न सका मुमकिन कभी

नभ में तारा दिख गया इक थी चमक सबसे अलग
खोजती उसको थी कब से था मेरा सचमुच कभी  

चांदनी भी श्वेत चादर ओढ़कर हँसती है जब 
निस्तब्धता की वो तरंगे आ चूम लेगी फिर कभी

सीप अपना मुँह खोले राह कब से तक रहा है
बूँद स्वाति की गिरेगी आएगा वो दिन कभी

ओस बूंदों को समेटे देख निशिकर मुस्कुराये
और कुसुम रवि- तेज सहकर कुम्भला जाए न कभी  

-कुसुम ठाकुर- 

न जाने क्यों आज विकल है


"न जाने क्यों आज विकल है"

मीत मिला तो भाग्य प्रबल है 
जीवन नश्वर भाव अचल है 

रह के दूर पास में दिल के 
क्या शिकवे की यहाँ दखल है 

उत्सर्गों का नाम प्यार है 
न पाकर भी जन्म सफल है 

प्रीत है बन्धन कई जन्मों का
हृदय धैर्य फिर कहाँ विफल है

कुसुम तो खिलकर हँसना जाने 
न जाने क्यों आज विकल है

-कुसुम ठाकुर-

दुःख के दिन भी कट जायेंगे


"दुःख के दिन भी कट जायेंगे"

सुख के दिन न रहे सदा तो
दुःख के दिन भी कट जायेंगे

भाग्य समझ मनमीत मिले तो  
सहज सफ़र फिर हो जायेंगे

जीवन में सद्भाव अगर हो
भाव प्रेम के क्यूँ कम होंगे  

एक है मांझी नाव कई है
धैर्य धरो हम नाव चढ़ेंगे 

भाग दौड़ है इस जीवन में
ठहरावों पर गले मिलेंगे  

 -कुसुम ठाकुर-

आस है ऋतुराज से


"आस है ऋतुराज से"

आज रूठूँ किस तरह जब पूछने वाला नहीं 
दिल के कोने में छिपा गम ढूँढने वाला नहीं

ढूँढती है ये निगाहें हर तरफ मुमकिन अगर
कैसे कम हो दर्द दिल का बाँटने वाला नहीं

रुख हवा का मोड़ दूँ है दिल में हलचल इस तरह
अनुभूतियाँ स्पर्श की पर चाहने वाला नहीं  

तान छेड़ूँ सप्त सुर में रागनी ऐसी कहाँ
संगीत की गहराईयों में डूबने वाला नहीं 

आस है ऋतुराज से नव कोपलें हों फिर कुसुम  
पत्तियाँ फिर से न सूखे सींचने वाला नहीं 

- कुसुम ठाकुर-