Saturday, December 31, 2011

लोकतंत्र बीमार है

 "लोकतंत्र बीमार है"

लोकतंत्र बीमार अब, है जनता में रोष।
इक दूजे पर थोपते, अपना अपना दोष।।

बातें जन-हित की करें, स्वार्थ न करते दूर।
आम लोग सच जानते, साथ चले भरपूर।। 

जागो देश निवासियों, नहीं हुई है देर  ।
बनी रहे बस एकता, दुश्मन होंगे ढेर।।

नहीं गुलामी देश में, फिर भी है संताप।
छोड़ गये अंग्रेज पर, शेष रह गयी छाप।।

प्रकृति नियम हरदम यही, होंगे ही बदलाव।
बहे हवा के संग कुसुम, उससे नहीं लगाव।।


-कुसुम ठाकुर-

Wednesday, December 28, 2011

सपनो में बस जाते हो


"सपनो में बस जाते हो"

कुछ बरसों का साथ रहा पर याद बहुत तुम आते हो
जानूँ वे पल फिर न आए, तुम सपनो में बस जाते हो

वे क्षण कितने प्यारे होते नैन जहाँ सब कह जाते
इक दूजे को समझ गए तो खुद को क्यूँ भरमाते हो

साथ नहीं मन का छूटा, बस आँखें न मिल पातीं हैं
मीत भिज्ञ हो कारण से तुम प्रश्न नया क्यों लाते हो

न बसंत न मेघ रिझाता, न भंवरों के गीत मुझे
ताल तलैया न सूखे क्यूँ अश्क से प्यास बुझाते हो

कला है जीना गर जीवन तो, कलाकार प्रेमी माला
कुसुम के सपनों को गीतों से आकर रोज सजाते हो

-कुसुम ठाकुर-